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शर्मिला का संघर्ष.... Anchor & Produce by Prashant Pandey & Team

https://www.youtube.com/watch?v=Vb-kfQkqBjI

गुम आदिवासी... Achor & Produce by Prashant Pandey & Team

https://www.youtube.com/watch?v=QTqRsWZ63_Y

एक मुलाकात

प्रशांत पांडेय  हम मिले थे बरसों बाद बैठे थे आस-पास चुप थे जुबान तेरे लब मेरे भी खामोश दोनों के दरम्यान थी गहरी खामोशियां लम्हों की मुलाकात कम थी शायद पिघलाने को दशकों से जमी बर्फ टूटा वो वादा तेरा, एक बार फिर निभाने की कसमें खाई थी जो कई बार

एक बरस और

प्रशांत पांडेय  एक बरस और फिसल गया मुट्ठी में बंद रेत की तरह कुछ खट्टी-मीट्ठी यादें रह गयीं ढलती शाम और आती रात की तरह किसी का साथ मिला, तो कोई बिछड़ गया पश्चिमी छोर पर डूबते सूरज की तरह बरस का यूं लेखा जोखा होता गया तराजू-बटखरे के मोल भाव की तरह काश! कुछ पल-कुछ लम्हें रोक पाते अपनों के निगहबान की तरह एक बरस और फिसल गया मुट्ठी में बंद रेत की तरह 

मीडिया की साख पर सवाल

प्रशान्त पाण्डेय यूं तो मीडिया की साख को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की साख पर सबसे ज्यादा सवाल उठे हैं। एक वक्त था जब लोग संचार के किसी भी माध्यम यानी अखबार, रेडियो या फिर टीवी न्यूज चैनलों से मिली खबरों को सही मानते थे और वो अमिट छाप छोड़ जाते थे। आकाशवाणी के बाद 1959 में दूरदर्शन का प्रायोगिक प्रसारण शुरू हुआ। इसके बाद 1965 से रेग्युलर प्रसारण शुरू हो गया और 5 मिनट के न्यूज बुलेटिन की शुरुआत हुई। हालांकि साठ के दशक में कोई निजी चैनल नहीं था। अखबार के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन ही खबरों का जरिया थे। दूर-दराज के इलाकों में तो महज रेडियो की ही पहुंच थी। अगर बात चार दशक पहले यानी 70 के दशक की करें, तो वो जमाना आपातकाल यानी इंमरजेंसी का था। जब तमाम अखबारों और पत्रिकाओं ने अपने तरीके से विरोध जताया। सारिका के तत्कालीन संपादक कमलेश्वर ने तो पूरी पत्रिका में ही सरकार से जुड़े शब्दों को काले रंग से रंग दिया। उस दौर में आकाशवाणी और दूरदर्शन पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में थे। इन दोनों माध्यमों पर लोग आरोप भी लगाया करते थे कि ये तो सरकार के मुताबिक ही खबरों

सावन में शिव उपासना

रश्मि प्रशांत   झारखंड यूं तो दुनिया में कोयला समेत अनेक खनिज संपदाओं के लिए जाना जाता है। लेकिन धार्मिक स्थलों के लिए भी ये राज्य काफी मशहूर है। हालांकि यहां कई प्रमुख धार्मिक स्थान हैं, जहां सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है। लेकिन सावन में यहां का महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। इसकी वजह है राज्य के देवघर में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा वैद्यनाथ का मंदिर। दरअसल, देवघर का शाब्दिक अर्थ होता है देवताओं का घर। यहां सावन के महीने में हर साल स्रावणी मेला लगता है। इस मौके पर लाखों भक्त बोल-बम! बोल-बम! का जयकारा लगाते वैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं और बाबा भोलेनाथ को जल चढ़ाते हैं। ये परंपरा काफी पुरानी है। सभी भक्त देवघर से 105 किलोमीटर दूर स्थित सुल्तानगंज से गंगाजल भर कर बाबा वैद्यनाथ के दरबार में पैदल ही पहुंचते हैं। सामान्य भक्त तो इस यात्रा को बीच-बीच में विश्राम कर पूरी करते हैं, तो वहीं कुछ भक्त जल भरने के बाद बिना कहीं रुके सीधे बाबा वैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं। इन्हें डाक-बम कहा जाता है। देवघर पहुंचने वाले भक्तों में बिहार-झारखंड ही नहीं देश और दुनिया के दूसरे देशों