एक मुलाकात
प्रशांत पांडेय
हम मिले थे बरसों बाद
बैठे थे आस-पास
चुप थे जुबान तेरे
लब मेरे भी खामोश
दोनों के दरम्यान थी
गहरी खामोशियां
लम्हों की मुलाकात कम थी शायद
पिघलाने को दशकों से जमी बर्फ
टूटा वो वादा तेरा,
एक बार फिर
निभाने की कसमें खाई थी जो कई बार
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