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Showing posts from May, 2017

एक मुलाकात

प्रशांत पांडेय  हम मिले थे बरसों बाद बैठे थे आस-पास चुप थे जुबान तेरे लब मेरे भी खामोश दोनों के दरम्यान थी गहरी खामोशियां लम्हों की मुलाकात कम थी शायद पिघलाने को दशकों से जमी बर्फ टूटा वो वादा तेरा, एक बार फिर निभाने की कसमें खाई थी जो कई बार

एक बरस और

प्रशांत पांडेय  एक बरस और फिसल गया मुट्ठी में बंद रेत की तरह कुछ खट्टी-मीट्ठी यादें रह गयीं ढलती शाम और आती रात की तरह किसी का साथ मिला, तो कोई बिछड़ गया पश्चिमी छोर पर डूबते सूरज की तरह बरस का यूं लेखा जोखा होता गया तराजू-बटखरे के मोल भाव की तरह काश! कुछ पल-कुछ लम्हें रोक पाते अपनों के निगहबान की तरह एक बरस और फिसल गया मुट्ठी में बंद रेत की तरह 

मीडिया की साख पर सवाल

प्रशान्त पाण्डेय यूं तो मीडिया की साख को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की साख पर सबसे ज्यादा सवाल उठे हैं। एक वक्त था जब लोग संचार के किसी भी माध्यम यानी अखबार, रेडियो या फिर टीवी न्यूज चैनलों से मिली खबरों को सही मानते थे और वो अमिट छाप छोड़ जाते थे। आकाशवाणी के बाद 1959 में दूरदर्शन का प्रायोगिक प्रसारण शुरू हुआ। इसके बाद 1965 से रेग्युलर प्रसारण शुरू हो गया और 5 मिनट के न्यूज बुलेटिन की शुरुआत हुई। हालांकि साठ के दशक में कोई निजी चैनल नहीं था। अखबार के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन ही खबरों का जरिया थे। दूर-दराज के इलाकों में तो महज रेडियो की ही पहुंच थी। अगर बात चार दशक पहले यानी 70 के दशक की करें, तो वो जमाना आपातकाल यानी इंमरजेंसी का था। जब तमाम अखबारों और पत्रिकाओं ने अपने तरीके से विरोध जताया। सारिका के तत्कालीन संपादक कमलेश्वर ने तो पूरी पत्रिका में ही सरकार से जुड़े शब्दों को काले रंग से रंग दिया। उस दौर में आकाशवाणी और दूरदर्शन पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में थे। इन दोनों माध्यमों पर लोग आरोप भी लगाया करते थे कि ये तो सरकार के मुताबिक ही खबरों

सावन में शिव उपासना

रश्मि प्रशांत   झारखंड यूं तो दुनिया में कोयला समेत अनेक खनिज संपदाओं के लिए जाना जाता है। लेकिन धार्मिक स्थलों के लिए भी ये राज्य काफी मशहूर है। हालांकि यहां कई प्रमुख धार्मिक स्थान हैं, जहां सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है। लेकिन सावन में यहां का महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। इसकी वजह है राज्य के देवघर में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा वैद्यनाथ का मंदिर। दरअसल, देवघर का शाब्दिक अर्थ होता है देवताओं का घर। यहां सावन के महीने में हर साल स्रावणी मेला लगता है। इस मौके पर लाखों भक्त बोल-बम! बोल-बम! का जयकारा लगाते वैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं और बाबा भोलेनाथ को जल चढ़ाते हैं। ये परंपरा काफी पुरानी है। सभी भक्त देवघर से 105 किलोमीटर दूर स्थित सुल्तानगंज से गंगाजल भर कर बाबा वैद्यनाथ के दरबार में पैदल ही पहुंचते हैं। सामान्य भक्त तो इस यात्रा को बीच-बीच में विश्राम कर पूरी करते हैं, तो वहीं कुछ भक्त जल भरने के बाद बिना कहीं रुके सीधे बाबा वैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं। इन्हें डाक-बम कहा जाता है। देवघर पहुंचने वाले भक्तों में बिहार-झारखंड ही नहीं देश और दुनिया के दूसरे देशों

सऊदी संकट से सबक की जरूरत

प्रशांत पांडेय  सऊदी अरब में फंसे भारतीय कामगारों के लौटने का सिलसिला शुरू हो चुका है। इस कड़ी में कुछ कामगार लौट भी रहे हैं। इस बीच विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सऊदी अरब में फंसे बेरोज़गार कामगारों से 25 सितंबर तक भारत लौटने की अपील की। उन्होंने कई ट्वीट्स कर कहा कि जो लोग कंपनियां बंद होने के कारण निकाल दिए गए हैं, वो अपना दावा दर्ज करा कर भारत लौट आएं। जो कामगार 25 सितंबर तक नहीं लौटेंगे, उन्हें वहां रहने-खाने और लौटने का इंतजाम ख़ुद करना होगा। विदेश मंत्री के मुताबिक सऊदी सरकार जब उन कंपनियों से हिसाब-किताब करेगी, तो दावे की रकम दिलवाई जाएगी। उन्होंने लिखा कि दावा तय होने में समय लगता है. तब तक वहां रहना लिए उचित नहीं होगा। दरअसल, अच्छी नौकरी और भारी भरकम तनख्वाह की हसरत लिए खाड़ी देशों का रुख करनेवाले कामगारों की तादाद लाखों में है। लेकिन क्या वहां वो बेहतर जिंदगी जी पाते हैं। या फिर उनका शोषण नहीं होता। अगर हम इसकी बात करें, तो मौजूदा सूरते हाल में ये सरासर गलत ही लगता है। सऊदी अरब की अलग-अलग कंपनियों में काम करने वाले भारतीयों के बेरोज़गार होने से मौजूदा संकट की शुरुआत हुई

भारत में महिला साक्षरता

प्रशांत पांडेय  कहा जाता है कि शिक्षा की रौशनी के बिना किसी भी समाज का चौतरफा विकास नहीं हो सकता। एक बेहतर समाज का सपना भी साक्षरता की राह से साकार होता है। ये किसी भी देश की सामाजिक आर्थिक विकास का आइना भी है। पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय साक्षरता मिशन और सर्व शिक्षा अभियान जैसे कुछ कार्यक्रम चलाए गए हैं और इसके बेहतर नतीजे भी सामने आ रहे हैं। इससे देश में साक्षरता दर में इजाफा देखने को मिल रहा है। भारत ने दशक दर दशक साक्षरता की दिशा में काफी प्रगति की है। 1951 में साक्षरता दर करीब 18.33 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 74.04 प्रतिशत तक पहुंच गई। इनमें 82.14 प्रतिशत पुरुष और 65.46 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। 2001 की तुलना में साक्षरता दर में 9.21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2001 में करीब 65 प्रतिशत आबादी साक्षर थी। अब बात आती है महिला साक्षरता दर की। अगर हम इसकी बात करें, तो पुरुषों की तुलना में वो कम तो जरूर है, लेकिन इसमें भी सकारात्मक बढ़ोतरी दर्ज हुई है। 2001 में 53.67 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थीं, जो 2011 में बढ़कर 65.46 प्रतिशत हो गया। यानी एक दशक में 11.79

कावेरी जल विवाद

एक राष्ट्र-एक संसाधन, संग्राम क्यों  प्रशांत पांडेय   बैठक दर बैठक आदेश दर आदेश, लेकिन मसला वहीं का वहीं, ये हाल है कावेरी जल विवाद का। हाल में कावेरी जल विवाद पर सर्वदलीय बैठक के बाद कर्नाटक सरकार ने पानी छोड़ने में असमर्थता जाहिर की। बैठक से पहले ही मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जता दिया था कि कर्नाटक पानी छोड़ने की स्थिति नहीं है। उन्होंने कहा था कि पहली प्राथमिकता राज्य के लोगों को पीने का पानी मुहैया कराना है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट कई बार कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने का आदेश दे चुका है। लेकिन कर्नाटक पानी की कमी का हवाला देता रहा। कुछ दिन पहले तो कर्नाटक विधान सभा ने सर्वसम्मति से संकल्प पारित कर तमिलनाडु को पानी देने से इनकार कर दिया। संकल्प के प्रस्ताव में कर्नाटक के लोगों की जरूरतों का हवाला दिया गया। प्रस्ताव में 2016-17 के दौरान पानी की भारी कमी और कावेरी के पानी का इस्तेमाल सिर्फ कावेरी बेसिन और बेंगलुरु के लोगों के पीने के लिए ही करने की बात कही गई। कर्नाटक विधान सभा ने माना कि कावेरी बेसिन के सभी चार जलाशयों का पानी सबसे निचले स्तर पर है और ये 27.6 टीएम